दुर्गा पूजा बंगालियों (Durga Puja in Bengal) का काफी बड़ा त्योहार होता है चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार की तैयारियां वे लोग महीने भर पहले से कर देते हैं जिसमें पंडाल से लेकर कल्चर एक्टविटी गायन, नृत्य, पेटिंग जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है. इतना ही नहीं इस अवसर के लिए लोग नए कपड़े भी खरीदते हैं. सदियों से बंगाल में दुर्गा पूजा का बहुत महत्व रहा है.
कैसे हुई थी दुर्गा पूजा की शुरुआत | दुर्गा पूजा का इतिहास - The History and Origin of the Durga Puja Festival
17वीं और 18वीं सदी में जमीदार और अमीर लोग बहुत बड़े स्तर पर पूजा का आयोजन करते थे, जहां सब लोग एक छत के नीचे देवी दुर्गा का पूजन करने के लिए इकट्ठा हुआ करते थे. उदाहरण के लिए कोलकाता में आचला पूजा काफी प्रसिद्ध है, जिसकी शुरुआत 1610 में जमींदार लक्ष्मीकांत मजूमदार ने कोलकाता के शोभा बाजार छोटो राजबरी के 33 राजा नबकृष्णा रोड से की थी. जो मुख्य रूप से 1757 में शुरू हुआ. इतना ही नहीं बंगाल के बाहर पंडालों में देवी दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना कर भव्य तरीके से उनकी पूजा का आयोजन किया जाने लगा.
Durga Puja 2018: दुर्गा पूजा बंगालियों का काफी बड़ा त्योहार होता है
Durga Puja 2018: दुर्गा पूजा का पौराणिक महत्व - Significance of Durga Puja in Hindi
दुर्गा पूजा की कथा या कहानी (Durga Puja Katha) : दुर्गा पूजा (Durga Puja) का त्योहार देवी दुर्गा ( Maa Durga) और राक्षस महिषासुर (Mahishasur) के बीच हुए युद्ध का प्रतीक है, यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. राक्षस महिषासुर ने कई वर्षो तक तपस्या और प्रार्थना कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा. महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे कई वरदान दिए लेकिन भगवान ब्रह्मा ने महिषासुर को अमर होने के वरदान की जगह यह वरदान दिया कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथों होगी. ब्रह्मा जी से यह वरदान पाकर महिषासुर काफी प्रसन्न हो गया और सोचने लगा की किसी भी स्त्री में इतनी ताकत नहीं है जो उसके प्राण ले सकें.
इसी विश्वास के साथ महिषासुर ने अपनी असुर सेना के साथ देवों के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया जिसमें देवों की हार हो गई और सभी देवगण मदद के लिए त्रिदेव यानि भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचें. तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति से देवी दुर्गा को जन्म दिया जिसके बाद दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध कर उसका वध किया, तो इस तरह से महिषासुर एक स्त्री के हाथों मारा गया. इस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत हुई. इसके अलावा इस त्योहार को फसल से जोड़कर भी देखा जाता है जो दुर्गा माता के जीवन और सृजन रूप को भी चिन्हित करता है.
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कैसे और कब मनाया जाता है दुर्गा पूजा (Durga Puja 2018) - How and when is Durga Puja celebrated
पंचमी या षष्ठी वाले दिन पंडाल में स्थापित देवी दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक और भगवान गणेश की खूबसूरत मूर्तियों का अनावरण भक्तों के दर्शन के लिए किया जाता है. पंचमी वाले दिन पूजा से पहले कई पंडालों में स्थानीय महिलाओं द्वारा आनंद मेला की व्यवस्था की जाती है. इसमें स्वादिष्ट चॉप, कटलेट्स, फिटर्स, मिठाईयों के अलावा कई मजेदार स्नैनक खाने को मिलते हैं, अगर आप सच में खाने के शौकीन है तो एक बार आनंद मेले के उत्सव में जरूर जाएं.
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दुर्गा पूजा पर कैसे रखें व्रत - Durga Puja Fast – Purpose and Rituals
पूजा वाले दिन भक्त सुबह जल्द उठकर दुर्गा अंजली होने तक उपवास करते हैं, उसके बाद फल और मिठाई खाकर अपना व्रत तोड़ते हैं. इसके बाद ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरूआत की जाती है. दुर्गा पूजा के मौके पर ज्यादातर शहरों में एक लाइन से कई पंडाल देखे जा सकते हैं और कई परिवार इन पंडालों में देवी दर्शन के लिए जाते हैं.
दोपहर के समय में देवी को पारंपरिक भोग जिसमें खिचड़ी, पापड़, मिक्स वेजिटेबल, टमाटर की चटनी, बैंगन भाजा के साथ रसगुल्ला भोग लगाया जाता है. अष्टमी वाले दिन, यह पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, इस दिन भोग में कुछ विशेष चीजें शामिल की जाती हैं जिसमें खिचड़ी की जगह चावल, चना दाल, पनीर की सब्जी, मिक्स वेजिटेबल, बैंगन भाजा, टमाटर की चटनी, पापड़, राजभोग और पेयश भोग में चढ़ाया जाता है.
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मगर भोजन का यह उत्सव यहीं खत्म नहीं होता है.
पंडालों में अक्सर फूड स्टॉलस लगाए जाते हैं जहां काठी रोल्स, कबाब, फ्राइड फिश, बिरयानी, नूडल्स, कटलेट्स, चॉप और कई प्रकार के नमकीन, मिठाई और स्नैक्स बेचे जाते हैं. विजयादशमी की शाम को खाने में स्वादिष्ट मटन बिरयानी, मटन कोशा और लूची जैसे व्यंजन परोसे जाते हैं जिसके साथ यह दिन समाप्त होता है.
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