डायबिटीज़ पीड़ित रमज़ान के दौरान रखें इन बातों का ख़ास ख़्याल

डायबिटीज़ पीड़ित रमज़ान के दौरान रखें इन बातों का ख़ास ख़्याल

नई दिल्ली:

आज से रमज़ान का पवित्र महीना शुरू हो गया है। मुसलमानों के हिसाब से यह महीना नौवी महीना होता है, जिसे रमज़ान के रूप में मनाया जाता है। इस महीने में मुस्लमान खासतौर से इबादत करते हैं और रोज़ा रखते हैं। सभी स्वास्थ्य और बालिग लोगों के लिए रोज़ा रखना अनिवार्य होता है। इसे रखने का मुख्य उद्देश्य बुरे कामों से बचना और रब को याद करना है। इस पूरे महीने के दौरान इस्लाम के सिद्धांतों पर मन लगाना और सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास करना होता है। सूर्य निकलने से पहले के आहार को सुहूर और सूर्यास्त के बाद के आहार को इफ्तार कहा जाता है। कुरान के मुताबिक, रोजे के जरिए दुनियावीं चीज़ों से मन को दूर कर अपनी रूह को शुद्ध करने के लिए हानिकारक अशुद्धियों से मुक्त होना है।

रमज़ान के दिनों में सुबह की सहरी से पहले खाना खाया जाता है और फिर पूरे दिन भूखे रहकर रब की इबादत की जाती है। और फिर इसके बाद शाम को अज़ान के बाद ही इफ्तार किया जाता है। इस बीच कुछ खाया-पिया नहीं जाता। लेकिन डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है, क्योंकि पूरा दिन भूखे रह कर हेल्थ के लिए हानिकारक होता है। लेकिन कुछ बातों को ध्यान में रखकर आप भी रोज़े रख सकते हैं और इस पवित्र महीने में अपने मे को शुद्ध कर सकते हैं।

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने बताया कि महीने भर के लिए उपवास करना हमारे शारीरिक प्रणाली के शुद्धिकरण और तन-मन को संतुलित करने के लिए एक अच्छा तरीका है। लेकिन अगर आपको कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी है, तो अपने डॉक्टर आदि से सलाह के बाद ही रोज़ें रखें, क्योंकि स्वस्थ रहकर ही रब की इबादत दिल से की जा सकती है। डायबिटीज़ पेशेंट भी अपनी हेल्थ को लेकर थोड़ी सतर्कता बरतें और नीचे दी गई बातों का ध्यान रखें।  

मेडिकल पहलुओं के आधार पर कुछ जरूरी टिप्स-

जिन्हें टाइप 1 डायबिटीजॉ है उन्हें बिल्कुल भी भूखा नहीं रहना चाहिए क्योंकि उन्हें हाईपोग्लेसीमिया यानी लो ब्लड शूगर होने का खतरा रहता है। आम तौर पर पाई जाने वाली टाइप 2 डायबिटीज़ वाले लोग रोज़ा रख सकते हैं लेकिन उन्हें नीचे दी गई बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए ताकि उनकी इस दौरान उनकी सेहत खराब ना हो-

  • स्लफोनाइल्योरियस और क्लोरप्रोप्माइड जैसी दवाएं रोज़े के वक्त नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इससे लंबे समय के लिए अवांछित लो ब्लड शूगर हो सकती है।
  •  मैटफोरमिन, प्योग्लिटाजोन, रिपैग्लिनायड रोजे के दौरान ले सकते हैं।
  • लंबी अवधि की इंसूलिन की दवा जरूरत के अनुसार लेनी चाहिए और शाम के खाने से पहले लेनी चाहिए।
  • छोटी अवधि की इन्सुलिन सुरक्षित होती हैं।
  • अगर मरीज की शूगर 70 से कम हो जाए या 300 तक पहुंच जाए तो उसे तुरंत रोज़ा खोल लेना चाहिए।

डायबिटीज़ के सभी मरीज जो रमजान के दौरान रोज़े रखने जा रहे हैं उन्हें शुरूआत में ही अपना चैकअप करवा लें और पूरे महीने में बीच-बीच में नियमित रूप से जांच करवाते रहें। इससे ना सिर्फ उन्हें आवश्यक सावधानियों के बारे में जानकारी मिलेगी, बल्कि उन्हें अपनी रूटीन बनाने में भी मदद मिलेगी ताकि उनकी सेहत पर इसका कोई प्रभाव ना पड़े और हेल्दी तरीके से स्वस्थ रहकर रोज़े रख सकें और इस पवित्र महीने का हिस्सा बन सकें।

स्वस्थ खाएं, स्वस्थ रहें। रमज़ान मुबारक!

(इनपुट्स आइएएनएस से)

 

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