ब्रेस्टफीडिंग प्रोमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) और पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क (पीएचआरएन) ने इंफेंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग (आईवाईसीएफ) पर सरकारी नीति और प्रोग्राम पर तैयार की आकंलन रिपोर्ट में बताया है कि भारत ने पिछले 11 सालों में स्तनपान के कार्य में धीमी प्रगति दर्ज की है।
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संस्था ने स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए सरकार के सामने सुझाव रखा है, जिसमें उन्होंने बाल आहार के नियम को सख्ती से लागू कर प्रभावी तंत्र बनाने को कहा है। इसके अलावा उन्होंने आईवाईसीएफ के लिए राष्ट्रीय नीति, बेबी-फ्रेंडली हॉस्पिटल, मातृत्व (मैटरनिटी) सुरक्षा और 9 महीने के मातृत्व अवकाश को भी करने का सुझाव दिया है।
‘अरेस्टिड डिवेलपमेंट' की रिपोर्ट के मुताबिक, संस्था ने 2004 के बाद आईवाईसीएफ संबंधित नीतियों एवं कार्यक्रम तथा इससे जुड़े विषयों के मूल्यांकन पर आधारित चौथा ऐसा दस्तावेज़ जारी किया है, जिसमें भारत ने 150 में से 78 अंक हासिल किए हैं। जो कि साल 2012 की तुलना में बेहतर है। “यहां तक की देश जैसे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका ने भी इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति दर्ज की है। यह संस्था मानव विकास पर आधारित है, जिसमें वह बच्चे के सरवाइवल (जीवीत रखने) और उनकी उन्नति के लिए काम करती है। भारत ने इस क्षेत्र में स्थिति कुछ सालों से स्थिर बनी हुई है”।
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डॉ. अरूण गुप्ता, बीपीएनआई के सेंट्रल कॉर्डिनेटर का कहना है कि आंकलन के दौरान हर तीन से पांच साल में होने वाले डब्ल्यूएचओ वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग ट्रेंड्स इनिशिएटिव (डब्ल्यूबीटीआई) के अंतर्गत, स्तनपान को बढ़ावा देने वाली सभी नीतियों और प्रोग्रामों में गैप देखा गया है। उन्होंने कहा है कि शिशु के जन्म लेने के एक घंटे के भीतर अगर बच्चे को स्तनपान कराया जाए, तो इससे 22 प्रतिशत तक नवजात मृत्यू को रोका जा सकता है। साथ ही उन्हें होने वाले इंफेक्शन से भी बचाया जा सकता है। डॉ. गुप्ता ने आगे बताते हुए कहा कि ऐसा करने से हम स्तनपान कराने के रेट में भी सुधार ला सकते हैं।