क्या जंक फूड का डेली सेवन आपके दिमाग को छोटा कर रहा है?

एक अध्ययन से पता लगा है कि जो लोग नियमित रूप से अनहेल्दी फूड जैसे मीठे पेय पदार्थ, नमकीन स्नैक्स और प्रोसेस्ड मीट आदि को अपनी डाइट में शामिल करते हैं.

क्या जंक फूड का डेली सेवन आपके दिमाग को छोटा कर रहा है?

नई दिल्ली:

प्रोसेस्ड और पैक्ड फूड को बिना किसी कारण ही जंक फूड नहीं कहा जाता। तेज भूख को अचानक से शांत करना और अपने लज़ीज और शानदार फ्लेवर से टेस्ट को बढ़ाना जंक फूड की ख़ासियत है, लंबे समय तक इनका प्रयोग करने से शरीर को गंभीर नुकसान हो सकता है।

हाल ही में आस्ट्रेलिया की जिलॉन्ग में डेकिन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन द्वारा किए गए अध्ययन से पता लगा है कि जो लोग नियमित रूप से अनहेल्दी फूड जैसे मीठे पेय पदार्थ, नमकीन स्नैक्स और प्रोसेस्ड मीट आदि को अपनी डाइट में शामिल करते हैं, उनमें दिमाग का एक हिस्सा मेमोरी और मास्तिष्क स्वास्थ्य, जो कि सीखने का जरूरी अंग माना जाता है सिकुड़ कर छोटा हो जाता है।

 

 

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यह अध्ययन 60 साल से ऊपर के लोगों पर किया गया, शोधकर्ताओं का मानना है कि बच्चों को मिलाकर निष्कर्ष सभी उम्र के लिए लोगों के लिए उचित है।

यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर, लीड स्टडी के लेखक फेलिस का कहना है कि, “कुछ समय पहले से हमें पता हैं कि हेल्दी और अनहेल्दी डाइट के कॉम्पोनेंट (घटक) का मस्तिष्क पर बहुत तेजी से प्रभाव पड़ता है, जो कि हिप्पोकैम्पल (दिमाग का एक हिस्सा) के आकार और कार्य करने पर असर डालता है, लेकिन यह अध्ययन अभी तक चूहों और चूहियाओं पर ही किए गए हैं।”

शोधकर्ताओं ने आस्ट्रेलिया में 60-64 साल के लोगों के हिप्पोकैम्पी (यह दिमाग में दो जगह होता है-राइट और लेफ्ट) का आकार नापने के लिए मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम आर आई) तकनीक का यूज किया। निष्कर्षों से पता लगा कि जो बूढ़े व्यस्कों अनहेल्दी फूड खाया जैसे- मीठी पेय पदार्थ, नमकीन स्नैक्स और प्रोस्सेस्ड मीट आदि में हिप्पोकैंपी का लेफ्ट हिस्सा छोटा पाया गया। वहीं, दूसरी ओर जो लोग पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ खा रहे थे जैसे सब्जियां, फल, फिश आदि में लेफ्ट हैप्पोकैंपी बड़ा पाया गया।

 

 

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फेलिस का कहना है कि, “यह निष्कर्ष डिमेन्श(दिमागी बीमारी) और दिमागी स्वास्थ्य दोनों से ही संबंध रखते हैं।” उन्होंने आगे बताया कि, “इस अध्ययन के जरिए बच्चों, किशोरों और व्यस्कों में अच्छे पोषक तत्वों के महत्व के बारे में पता लगाया गया है”।

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यह अध्ययन जरनल बीएससी मेडिसीन में प्रकाशित हुआ था।    

 

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