अगर ऑड-ईवन आगे बढ़ाया गया, तो क्या फिर दिल से मानेगी दिल्ली?

अगर ऑड-ईवन आगे बढ़ाया गया, तो क्या फिर दिल से मानेगी दिल्ली?

नई दिल्ली:

हाल ही में छत्रसाल स्टेडियम में केजरीवाल ने लोगों को ऑड-ईवन को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि ऑड-ईवन फॉर्मूला नए वर्ज़न, जरूरी बदलावों और सावधानियों के साथ दिल्ली में फिर वापस लौटेगा। जब पिछले महीने दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा स्कीम लाने की घोषणा की गई थी, तो लोगों ने इसका खुले दिल से स्वागत नहीं किया था।
ट्वीटर पर लोगों की खूब प्रतिक्रिया देखी गई और लोगों द्वारा प्लान में ही कमी बताई गई। आपत्ति की लिस्ट ने इसमें आग लगाने का काम किया।

स्कीम के लागू होने से दो दिन पहले, 30 दिसंबर, 2015 को हाई कोर्ट ने भी इस फॉर्मूले पर सवाल खड़े कर प्लान सफलता को असंजस में डाल दिया। यही नहीं, इस दौरान दिल्ली सरकार से पूछा गया कि इस फॉर्मूले से महिलाओं और टू-व्हीलर को क्यों दूर रखा गया है। यहां उन पूरे वाहनों की लिस्ट दी जा रही है, जो इस स्कीम से बचे थे :

  1. सभी सीएनजी वाहन (सर्टिफाइड गाड़ियां)
  2. इलेक्ट्रिक वाहन
  3. हाइब्रिड वाहन
  4. टू-व्हीलर
  5. महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे वाहन, जिसमें महिला ही पैसेंजर हो।
  6. वाहन जो महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं, जिनके साथ 12 साल से कम उम्र के बच्चे बैठे हों।
  7. अपातकालीन चिकित्सा के लिए हॉस्पिटल जा रहे लोग (साथ में प्रूफ होना जरूरी)।
  8. शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए
  9. इमरजेंसी वाहन : एंबुलेंस, फायर, हॉस्पिटल, जेल, शववाहन आदि।
  10. राष्ट्रपति
  11. उप-राष्ट्रपति
  12. मुख्यमंत्री
  13. भारत के मुख्य न्यायधीश
  14. लोकसभा के स्पीकर
  15. राज्यसभा के उपचेयरमैन
  16. लोकसभा के डिप्टी स्पीकर
  17. राज्यों के गवर्नर्स
  18. लेफ्टिनेंट गवर्नर
ऐसे में कई तरह के सवाल उठाए गए। यहां तक की कई लोगों को लगा कि वास्तव में यह फॉर्मूला काम नहीं करेगा। लेकिन यह कारगर रहा। नए साल के पहले दिन, एक जनवरी, 2016 को सिर्फ ऑड नंबर की गाड़ियों को ही सड़कों पर दिखने की अनुमति थी। स्कीम को लागू करने का समय बिल्कुल सही था, एक जनवरी जब लगभग ऑफिसों की छुट्टी थी। इस कारण, लोग धीरे-धीरे इस स्कीम में घुस गए और 4 जनवरी को उनका लिटमस टेस्ट था।  

क्या दिल्ली वालों ने सुना?
हर कोई सांस रोककर सोमवार का ही इंतजार कर रहा था। सोमवार की सुबह मैं अपनी (ईवन नंबर) की कार के साथ रोड पर निकली। दिल्ली-एनसीआर में यह मेरी 25 मिनट की पहली सुखद ड्राइव थी, जब मुझे बिल्कुल भी ट्रैफिक नहीं मिला था। ट्रैफिक टाइम पर नोएडा से ओखला आने में जहां मुझे कम से कम एक घंटा लगता है, वहीं मुझे यह रास्ता कवर करने में मुश्किल से 25 मिनट लगे। आश्रम और डीएनडी पर कोई ट्रैफिक नहीं था। जब मैंने अपने चारों ओर देखा, तो मैंने नोटिस किया कि उस पूरे रूट पर सिर्फ दो ऑड नंबर की गाड़ी ही थी, जो कि महिलाओं द्वारा नहीं चलाई जा रही थी।
 


दिल्ली वालों ने सुना!
कार की जांच के लिए रास्ते में कहीं भी बैरकेड नहीं लगे थे। भले ही, नियम का उल्लंघन करने वालों पर दो हज़ार रुपये का भारी जुर्माना था, बहुत ही कम लोगों ने बिना किसी कारण के नियम तोड़े। लोग वास्तव में इस फॉर्मूले को फॉलो करना चाहते थे और इसमें फर्क देखना चाहते थे। दिनों-दिन दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर में आपके और मेरे जैसे लोगों का सांस लेना मुश्किल हो रहा था। इस प्रदूषण के कारण बच्चों के फेफड़े  सही से विकसित नहीं हो रहे, क्योंकि हमने कभी यह फर्क देखने की कोशिश ही नहीं की। इसलिए अपने लिए और बच्चों के लिए ऑड-ईवन को पूरी तरह से सर्पोट करें।

देश में सबसे अच्छे मेट्रो नेटवर्क होने के बावजूद दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन कम पड़ रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा और आराम की दृष्टि से यहां ज़्यादा विकल्प नहीं है। जब तक कुछ घटनाएं इन पर सवाल न उठाएं, तब तक वर्किंग क्लास को रेडियो टैक्सी राहत पहुंचा रही है।

अब नियम खत्म हो चुका है। हम अपने गाड़ियों पर वापस आ चुके हैं। इसलिए फिर से वही परेशानी शुरू हो चुकी है। आप और मैं फिर उसी हवा में सांस ले रहे हैं। ट्रैफिक में फंस कर हम अपना टाइम खराब कर रहे हैं। शहर में 27 लाख रजि‍स्टर्ड गाड़ियां हैं और यह नंबर दिनों-दिन बढ़ रहे हैं।

परिवहन मंत्री गोपाल राय ने कहा कि स्कीम के दूसरे चरण में हम सभी को सम्मलित करेंगे, जिसकी ओर दिल्ली सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। हालांकि, उन्होंने इस पर कुछ विस्तार से नहीं बताया। दिल्ली सरकार ऑड-ईवन के प्रभावों का आकलन करने और भविष्य नीति के लिए जल्द ही समीक्षा बैठक करेगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, 'स्कीम के दौरान सड़कों पर 20 लाख गाड़ियां इस्तेमाल की गईं, लेकिन 100, 200 और 500 चालान कटे, जो की कुछ नहीं थे। इसका मतलब है, दिल्ली के लगभग 100 प्रतिशत लोगों ने इस नियम को फॉलो किया।'

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आखिर में फिर यही सवाल उठता है कि क्या यह फिर संभव है, दिल्ली इसे फिर सुनेगी? इस बार कानून, पुलिस के डर से नहीं, बल्कि अपनी सहुलियत के लिए? ऑड-ईवन फॉर्मूला हमसे विनती करता है कि हम अपनी सहूलियत को भूल बाहर आएं और घर पर ही गाड़ी छोड़ें। सह-कर्मियों के साथ गाड़ी शेयर करना सही है। नॉन-पीक टाइम में मेट्रो इस्तेमाल करें। अगर जरूरत लगे तो टैक्सी, बस और ऑटो का इस्तेमाल करें। क्या यह असंभव काम है? साल के शुरुआती दो हफ्तों में साफ दिखा कि दिल्ली वालों में असंभव का संभव बनाने की क्षमता है। क्या आप करेंगें?