पुरानी दिल्ली की परांठे वाली गली में हैं परांठों की ढेरों वैरायटी

गर्म तेल की गंध और भुने मसालों की खुशबू मुझे अपनी ओर खींच रही थी। दुकानदारों का तेज आवाज़ में चिखना और बिजी गलियों में मची उथल-पुथल। यह नज़ारा था पुरानी दिल्ली के परांठे वाली गली का

पुरानी दिल्ली की परांठे वाली गली में हैं परांठों की ढेरों वैरायटी

नई दिल्ली:

गर्म तेल की गंध और भुने मसालों की खुशबू मुझे अपनी ओर खींच रही थी। दुकानदारों का तेज आवाज़ में चिखना और बिजी गलियों में मची उथल-पुथल। यह नज़ारा था पुरानी दिल्ली के परांठे वाली गली का। एक बड़ी कड़ाही में देसी घी के साथ बुदबुकादे परांठे, देखते ही देखते गोल्डन रंग में बदल गए। इन्हें देख मेरे होंठों पर खुद ही एक मुस्कान-सी आ गई, खुद को परांठों से दूर कर पाना मुश्किल हो रहा था।

पुराने शहर के फूड में परंपरा राज कर रही थी। सिर्फ खाने को शानदार तरीके से परोसने के अलावा, यहां और भी बहुत-सी आदर्श चीज़े मुझे अट्रैक्ट कर रही थीं। एक मैली गली, जिसे दरीबा खुर्द के नाम से जाना जाता है, लगभग बंजर थी, जहां कुछ ब्राहम्ण परिवार की चांदी और साड़ी की दुकान थी। इसके साथ ही, वहां थी 10-12 परांठा शॉप, जो कि एक ही परिवार द्वारा चलाई जा रही हैं। हर कॉर्नर पर इनकी खुशबू लोगों को अपने पास बुला लेती है। इस ख़ासियत ने ही आस-पास के लोगों को इसका नाम परांठे वाली गली रखने को मजबूर कर दिया।

 

 


 


 


 


 


 


 

 

 


1872 में स्थापित हुई कुछ दुकानों में से एक पंडित शिव चरन शॉप है, जो छठी पीढ़ी द्वारा चलाई जा रही है। यहां के मालिक अनिल शर्मा ने बताया कि, “मध्यप्रदेश में कई शादियों और फंक्शन में आलू-पूरी और कद्दू की सब्जी सर्व की जाती है। जब हम काम की तलाश में दिल्ली आए, तो हमें यह बिजनेस चलाने का आडिया आया। पूरी से कॉन्सेप्ट लेते हुए, हमने स्टफड परांठा बनाना शुरू किए, जिन्हें देसी घी में डीप फ्राई करके बनाया जाता है और उन्हें आलू-मेथी, केले-सोंठ की चटनी और कद्दू की सब्जी के साथ परोसा जाता है। हमने इन्हें चार वैरायटी के साथ शुरू किया था, आलू, दाल, बेसन-मेथी और परांठेवाला परांठा ।”

ये परांठे गेंहू के आटे, स्थानीय सामग्री और मसाले के साथ स्टफिंग कर डीप फ्राई करके बनाए जाते हैं। पैन-फ्राई के विपरीत, डीप-फ्राई प्रक्रिया से टेस्ट बदल जाता है। जहां तेल बाहरी परत को गोल्डन ब्राउन करता है, वहीं स्टीम उसे अंदर से सेंकने में मदद करती है। इसी वजह से आप पाएंगे कि ये परांठे अंदर से चिकने नहीं होते। यह उतना तेल नहीं सोखते, जितना पैन फ्राई में तलने पर सोखते हैं। एच. के. शर्मा ने बताया कि, “कुकिंग के दौरान वह जिस तवे का इस्तेमाल करते हैं, वह गहरा और 10-12 किलो वेट का है, जो कि परांठों को घी सोखने से बचाता है।”   

 

 

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इसके अलावा, आप मजेदार स्टफड नींबू-पुदीना, मिर्ची, टमाटर, बादाम और स्वीट फिलिंग जैसे- रबड़ी, मावा और खुरचन भी ट्राई कर सकते हैं। कुछ शॉप 120 सालों से चली आ रही हैं। समय के साथ-साथ यहां बदलाव आते गए। बदलाव हमेशा ही अच्छे नहीं होते। बहुत से दुकानदारों ने अपनी दुकान बंद कर, यह बिजनेस किसी और को बेच दिया और खुद दूसरे बिजनेस की ओर रुख कर गए। आज ढहते मकानों के बीच, केवल चार दुकानें ही बची हैं, हालांकि ये भी अपनी चमक खो रही हैं- बाबू राम परांठे वाला, पंडित गया प्रसाद शिव चरन, कन्हा लाल दुर्गा प्रसाद और बाबू राम देवी दयाल। कई चुनौतियों के बावजूद, यह आज भी लोगों की पसंद बने हुए हैं।
 


मैंने जब यहां का नींबू-परांठा खाना शुरू किया, तो शॉप ओनर एच. के. शर्मा ने बताया कि, “उनकी शॉप दादा द्वारा शुरू की गई थी। उस समय यह परांठे पत्तल और सूखे पत्तों में सर्व किए जाते थे, मिट्टी के पॉट या कुल्हड़ में लस्सी दी जाती थी। लोग जमीन पर या दरी पर बैठ कर परांठों का स्वाद लेते थे।


 


 


 


 


 


 


 

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एक टाइम वह भी था जब यह परांठा 50 पैसे में मिला करता था और आज यही 50 से 65 रुपये के बीच मिलता है। यहां का नींबू-पुदीना परांठा बहुत शानदार था, फ्लेवर का नया तड़का। उन्होंने मुझे पापड़ परांठा ट्राई करने की सलाह दी। वह एक अलग से जले हुए स्वाद के साथ बाहर से देखने में क्रीस्पी लग रहा था। यहां दुकानें ब्राह्मण परिवारों द्वारा चलाई जा रही हैं, इसलिए यहां प्याज़, लहसुन इस्तेमाल नहीं किया जाता। स्वीट परांठे हमेशा की तरह खाने में टेस्टी थे। इनमें खोया, रबड़ी और नट्स की स्टफिंग की गई थी। एक ग्लास ताज़ा बनी लस्सी पीकर मेरा पेट में कुछ और चखने की जगह नहीं बची थी।
साथ ही, पंडित गया प्रसाद शिव चरन के ओनर ने गर्व के साथ यहां आए जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और विजयलक्ष्मी पंडित भी परांठों का स्वाद चखने आ चुके हैं। यही नहीं, उन्होंने बताया कि, “पूर्व प्रधावमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और यहां तक की अमिताभ बच्चन भी यहां के कस्टमर रह चुके हैं। लेकिन, आज यहां पर्यटकों की भी कमी हो रही है। अब अक्सर आस-पास के स्थानीय लोग ही यहां आते हैं। सस्ता और पैष्टिक खाने के लिए लोग यहां आते हैं।”


अनिल शर्मा ने बताया कि, “उनके बच्चे इस बिजेनस को आगे नहीं चलाना चाहते हैं, क्योंकि वह कोई फायदे का बिजनेस करना चाहते हैं। हम बचपन से ही इस माहौल में बढ़े हुए हैं, इसलिए यह काम पसंद है।”  

सदियों से चले आ रहे यह पुराने रेस्तरां जब बंद होते हैं, तो बहुत निराशा होती है। इनका भविष्य अंधेरे में लगता है, लेकिन परांठे वाली गली ने अभी तक अपनी पकड़ बना रखी है।

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कैसे पहुंचे यहां: आप चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन तक की मेट्रो ले सकते हैं और वहां से बाहर निकल कर सड़क के विपरीत ओर रूख करें। सभी शॉप सबुह 9 बजे से रात को 11 बजे तक खुली रहती हैं।

 

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